प्रकाशकीय
हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना वैशाख कृष्ण ७, संवत् १९६७, तदनुसार १ मई, १९१० ई० को हुई थी। तब से लेकर अब तक राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार, भाषा एवं साहित्य के संवर्द्धन और उन्नयन के क्षेत्र में अनवरत विकास हुआ है। इस संस्था को पल्लवित, पुष्पित एवं विकसित करने में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, देशरत्न डॉ० राजेन्द्रप्रसाद, भारतरत्न राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन प्रभृति राष्ट्रनायकों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। सम्मेलन को इस बात का गर्व है कि वह एक स्वावलम्बी संस्थान के रूप में हिन्दी भाषा और साहित्य की विविध प्रवृत्तियों के संवर्द्धन में समर्थ रूप
से कार्यशील है।
सम्मेलन की परीक्षाओं में प्रतिवर्ष हजारों परीक्षार्थी बैठ रहे हैं। सम्मेलन के हिन्दी- संग्रहालय का विश्व में अपना विशिष्ट स्थान है। देश-विदेश के शोध छात्र एवं विद्वान् यहाँ बैठकर दुर्लभ ग्रन्थों एवं पाण्डुलिपियों का अध्ययन-अवलोकन करते हैं। प्राचीन पाण्डुलिपियों के अनुरक्षण, सूचीकरण एवं संरक्षण की पूरी व्यवस्था आधुनिकतम पद्धति से की गयी है।
सम्मेलन के चतुर्दिक् विकास का इतिवृत्त भी इस दैनन्दिनी का एक अंग है। ‘सम्मेलन- दैनन्दिनी’ अपने तरह की एक विशिष्ट दैनन्दिनी है। इसकी लोकप्रियता समाज के विशेष वर्ग में है।
दैनन्दिनी में दी गयी तिथियों और व्रत-त्योहारों को निर्देशित करने में पूरी सावधानी रखी गयी है, तथापि यदि कहीं कोई अशुद्धि रह गयी हो, तो विज्ञजन क्षमा करेंगे। त्योहारों के निर्देशन में भी पूरी सफलता नहीं मिल पायी है। केवल उत्तर भारत या हिन्दी-प्रदेश की सीमा लाँघ नहीं पा रहे हैं। देश के प्रत्येक प्रदेश के त्योहारों-उत्सवों की सूचना देना भी हमारा अभीष्ट है। अतः आप सबसे यह अनुरोध है कि जिसके पास जो सूचना है, वह हमें दें। त्योहार अंग्रेजी तिथि से मनाया जाता है या भारतीय तिथि से, इसका उल्लेख अवश्य करें, जिससे दैनन्दिनी में उसका सही निर्देश किया जा सके।
सम्मेलन-दैनन्दिनी का यह पचासवाँ पुष्प स्वामी दयानन्द सरस्वती, डॉ० जगदीश गुप्त, श्री हरिशंकर परसाई को समर्पित है, जिनकी जन्मशताब्दी वर्ष है।
विश्वास है कि सम्मेलन की प्रत्येक प्रवृत्ति के प्रति अनुराग और इसके विकास के लिए सुधी राष्ट्रभाषा-प्रेमियों का सक्रिय सहकार अवश्य प्राप्त होगा।
विभूति मिश्र
प्रधानमन्त्री
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग १२, सम्मेलन मार्ग, प्रयागराज-210035
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हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने तथा हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि का व्यापक प्रचार करने के उद्देश्य से नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने वैशाख कृष्ण ७, संवत् १९६७, तदनुसार १ मई, १९१० ई० को एक बैठक में अखिल भारतीय स्तर पर एक साहित्य-सम्मेलन बुलाने का निश्चय किया था।