सम्मेलन संग्रहालय
सम्मेलन-संग्रहालय के इस ज्ञान केन्द्र में लगभग १२००० हस्तलिखित ग्रन्थ संगृहीत है। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत हस्तलिखित ग्रन्थों की विवरणात्मक सूची दो भागों में मुद्रित हो चुकी है।
भारत सरकार द्वारा स्वीकृत योजनाओं के अन्तर्गत वर्ष १९८४-८५ के अन्तर्गत संग्रहालय में संगृहीत पाण्डुलिपियों की संस्कृत एवं हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों की विवरणात्मक सूची दो भागों में मुद्रित की गयी है।
सम्मेलन के इस हस्तलिखित ग्रन्थ-कक्ष का अपना विशिष्ट महत्त्व है। इसमें अनेक ग्रन्थ सर्वथा दुर्लभ एवं अप्राप्य हैं और उनका ऐतिहासिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से विशिष्ट महत्त्व है। इन महत्त्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रन्थों को लाल कपड़ों में लपेटकर काष्ठ के वेष्ठनों में सुरक्षित कर गोदरेज की अलमारियों में व्यवस्थित रूप से रखा गया है। सुरक्षा की दृष्टि से समय-समय पर नेप्थीन की कीटनाशक गोलियाँ रखी जाती हैं तथा विशेष कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव भी किया जाता है।
सम्मेलन-संग्रहालय के इस विशेष कक्ष में १७ वीं शती का हस्तलिखित कुण्डलीनुमा सचित्र भागवत, जिसमें अत्यन्त कलात्मक ३८ चित्र हैं, जिसकी लम्बाई ६९ फीट है, काष्ठमंजूषा में सुरक्षित है। इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता का अत्यन्त कलापूर्ण एवं मूल्यवान् गोलाकृत हस्तलेख शीशे में मढ़ा हुआ, इस कक्ष में प्रदर्शित है।
सम्मेलन के इस संग्रहालय में ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तुओं के अतिरिक्त साहित्यकारों के ४१९७ महत्त्वपूर्ण पत्र भी संगृहीत हैं।
प्राचीन समय के १८ सिक्के, जिनमें अधिकांश का विवरण लिखा हुआ है, संग्रह में सुरक्षित हैं। इसके अतिरिक्त अनेक ताम्रलेखों-अभिलेखों की प्रतिलिपियाँ भी संग्रह में सुरक्षित हैं।
संग्रह में विशिष्ट साहित्यकारों तथा साहित्यिक गतिविधियों के अवसरों के अनेक महत्त्वपूर्ण एवं दुर्लभ चित्र एलबम में सुरक्षित हैं और इसी प्रकार विशिष्ट साहित्यकारों के परिचय-पत्र गार्ड-फाइलों में सुरक्षित किये गये हैं।
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हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने तथा हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि का व्यापक प्रचार करने के उद्देश्य से नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने वैशाख कृष्ण ७, संवत् १९६७, तदनुसार १ मई, १९१० ई० को एक बैठक में अखिल भारतीय स्तर पर एक साहित्य-सम्मेलन बुलाने का निश्चय किया था।