सम्मेलन संग्रहालय
हिन्दी-संग्रहालय की स्थापना का प्रस्ताव सन् १९२२ (सं० १९७९) में सम्मेलन के तत्कालीन सभापति राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन ने रखा था। फलतः १६ मई, १९३२ (संवत् १९८९) को इस संग्रहालय की नींव रखी गयी। राष्ट्रीय और सांस्कृतिक गर्व-गौरव से समुत्रत संग्रहालय का उद्घाटन दिनांक ५ अप्रैल, १९३६ को राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी द्वारा हुआ, जिसमें माता कस्तूरबा, पं० जवाहरलाल नेहरू, काका कालेलकर, विजयलक्ष्मी पण्डित, राजर्षि टण्डन आदि विभूतियों ने भाग लिया।
संग्रहालय का विशाल कक्ष ९० ४० फीट लम्बा और चौड़ा है। २० स्तम्भों पर प्रकोष्ठ बनाये गये हैं। अधोभाग में स्थित विशाल कक्ष के अतिरिक्त ४ छोटे-बड़े कमरे और ऊपरी भाग में प्रकोष्ठों के अतिरिक्त ५ कमरे हैं।
राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन ने प्रारम्भ में ही हिन्दी-संग्रहालय की ऐसे साहित्यिक एवं सांस्कृतिक भाण्डार के रूप में कल्पना की थी, जिसमें उच्चस्तरीय शोध के लिए सहज ही सामग्री उपलब्ध होगी। उन्हीं के कल्पनानुसार सन् १९३६ से अबतक लगातार नये पुराने हिन्दी- ग्रन्थों, प्राचीन हस्तलेखों, साहित्यकारों के पत्रों, दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक एवं त्रैमासिक हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के सुव्यवस्थित संग्रह के कारण यह संग्रहालय आज हिन्दी के उच्चस्तरीय शोध में प्रवृत्त प्रत्येक छात्र एवं विद्वानों के लिए परम उपयोगी बन गया।
आज हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संग्रहालय भवन (हिन्दी-संग्रहालय) में ७७,२२४ मुद्रित पुस्तकें, ३७७२ दैनिक पत्रों की, २९३२ साप्ताहिक पत्रों की, १५,२४० मासिक पत्रिकाओं की और गजट की १७५५ जिल्दबन्द फाइलें व्यवस्थित एवं सुरक्षित करके रखी गयी हैं।
सम्मेलन के हिन्दी-संग्रहालय के अन्तर्गत हिन्दी पुस्तकालय भी है, इस पुस्तकालय में भी इस समय १६३०० पुस्तकें हैं। जिनका उपयोग सामान्य जन, छात्र और अध्येता निरन्तर करते रहे हैं।
आज हिन्दी-संग्रहालय में पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं, पत्रों, चित्रों तथा अन्य सामग्रियों की सम्पूर्ण संख्या डेढ़ लाख से भी अधिक है। इस संग्रह में हिन्दी एवं संस्कृत भाषा के कुछ दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थ भी हैं, जिनकी संख्या लगभग सात सहस्रन से भी अधिक है। पूरा विभाग आधुनिक पुस्तकालय के अन्तर्गत व्यवस्थित है, जिसमें ग्रन्थों के नामों पर आधारित पेटिकाएँ और लेखकों के नामों पर आधारित पेटिकाएँ हैं। सम्मेलन का हिन्दी-संग्रहालय अनेक कक्षों में विभाजित है। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन कक्ष, सूरज सुभद्रा कक्ष, रणवीर कक्ष, वसु कक्ष आदि। पत्र- पत्रिकाओं का कक्ष अलग है। संग्रहालय में ‘बाल साहित्य’ व ‘पत्र-पत्रिका कक्ष’ तथा ‘गाँधी वाङ्मय’ आदि से सम्बन्धित कक्षों की भी योजना है।
हिन्दी-संग्रहालय में मुद्रित एवं हस्तलिखित अध्ययन सामग्री के समुचित उपयोग की भी व्यवस्था की गयी है। हिन्दी के स्वतन्त्र साहित्यकारों, शोधकर्ताओं एवं सामान्य पाठकों द्वारा यहाँ की अध्ययन सामग्री का निरन्तर उपयोग किया जाता है। भारत के प्रायः सभी प्रदेशों और विदेशों के भी हिन्दी में शोध कार्य करनेवाले विद्वान् एवं शोधछात्र यहाँ आकर अध्ययन- सामग्री का उपयोग निःशुल्क करते हैं।
आर० जी० आकोनोव, बी० नाथन, स्वयम्भू भट्टाचार्य, रामनाथ पाण्डेय, श्यामसुन्दर अग्रवाल, वारात्रिकोष, आर० एस० मैकग्रेगर, रामप्रसाद त्रिपाठी, जैनेन्द्रकुमार, वी० पाब्लोव (मास्को), हरिभाऊ उपाध्याय, क्षितिमोहन सेन, नतालिया दोन्दे (मास्को), कर्णसिंह, चतुरसेन शास्त्री, ओदोलेन स्मेकल, चन्द्रभानु गुप्त, हरद्वारीलाल शर्मा, रघुवीर सिंह, भक्तदर्शन, श्यामलाल यादव, लक्ष्मीशंकर व्यास, स्वरूपरानी बख्शी, केदार पाण्डेय, त्रिभुवननारायण सिंह, देवेन्द्रचरण मित्र, पारसनाथ तिवारी, त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी, भगवानगोविन्द जोशी, रामप्यारे शुक्ल, रामगोपाल रेड्डी, डॉ० मे० राजेश्वरय्या, रामकिशोर शुक्ल, रामेश्वर मिश्र, ब्रजेन्द्र मंगर भगत ‘मधुकर’ (मॉरिशस), डेविड लारेज्जन (मैक्सिको), टी० विक्रम पति, बनवारीलाल यादव, ब्रजलाल वर्मा, गिरिजाकुमार माथुर, प्रभाकर माचवे, त्रिलोचन शास्त्री, चन्द्रकान्त देवताले, वसन्तराव पाटिल, अदूर स्वामीनाथन आत्रेय, बालशौरि रेड्डी, श्री लोकपति त्रिपाठी, डॉ० संजय सिंह, डॉ० रिचर्ड बार्ज (आस्ट्रेलिया), श्री प्रमोद तिवारी, डॉ० सूर्यप्रसाद दीक्षित, श्री हाइडी पावेल्स (आस्ट्रेलिया), श्री महादेव साहा, डॉ० डेविड लारेन्स तथा प्रो० फिलिप लटगेण्डोर्फ (यू० ए० ए०), डॉ० रमेशचन्द्र शर्मा, डॉ० गणेशदत्त सारस्वत, श्री उदयशंकर तिवारी, श्री आशाराम वर्मा, जुगराज वर्मा, योशिफिम मिजनो (जापान), दुर्गाप्रसाद प्रशान्त, रुपर्ट स्नेल (लन्दन), श्री अर्जुन सिंह, श्रीमती सरोजकुमारी, श्री रामअवतार शर्मा, शिवकुमार, श्री मुलायम सिंह यादव, कु० कुप्पुस्वामी, श्री चन्द्रशेखर, डॉ० तेयो दमिस्तेख्त, मलय नौरव, श्री मोतीलाल बोरा, हरीश त्रिवेदी, गिरीश रस्तोगी, श्री रामानन्द सागर, श्री सिद्धेश्वरप्रसाद, सेराग्रीना (अमेरिका), डॉ० इमरै बन्धा (ऑक्सफोर्ड), एलिसन बुश (सेराग्रीन), फ्रंचेस्का ओसींनी (इंग्लैण्ड), उम्बरैता नाददैल्ला (इंग्लैण्ड), श्री अभिमन्यु अनत (मॉरिशस), दानूता स्ताशिक (पोलैण्ड), डॉ० एस० के० पवार (कर्नाटक), डॉ० कैलाशनाथ पाण्डेय, हिसाए
कोमात्सु, (जापान), रोहित दत्ता राय (कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय), आकृति गान्धवानी (यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया, यू०एस०ए०), आना ली व्हाइट (मक्गिल कानाटा, यू०एस०ए०), रोहिनी पिल्लै (यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया, यू०एस०ए०), प्रो० जेनिफर डूनो (यूनिवर्सिटी आफ वाशिंगटन, सिएटल), जमील (यूनिवर्सिटी आफ वाशिंगटन, सिएटल), प्रो० रीता बहुगुणा जोशी (सांसद व पूर्व उ०प्र० मंत्री), प्रो० सभापति मिश्र, इन्द्रजीत सिंह (पूर्व प्राचार्य केन्द्रीय विद्यालय, देहरादून), श्री राम विष्णुदास-महामंत्री, कामदगिरि प्रदक्षिणा प्रमुख द्वार, श्री चित्रकूट धाम, डॉ० दीप्ति मिश्र (सहायक उप शिक्षा निदेशक, राज्य शिक्षा संस्थान, प्रयागराज), मथुरा प्रसाद सिंह ‘जटायु’ (साहित्यकार), आद्या प्रसाद सिंह ‘प्रदीप’ (साहित्यकार), डॉ० ओंकार नाथ द्विवेदी (साहित्यकार), प्रो० राम मोहन पाठक (कुलपति, नेहरु ग्राम भारती), डॉ० जयेश खण्डेलवाल (मथुरा, वृंदावन) अर्जुन गायगोल (राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा), प्रो० राजेन्द्र त्रिपाठी ‘रसराज’, डॉ० आशुतोष पार्थेश्वर (असि० प्रो०, हिन्दी-विभाग, इ० विवि०), राघवेन्द्र सिंह (इलाहाबाद संग्रहालय, उप-निदेशक), मेलिना ग्रेवियर (इंग्लैण्ड, शोधार्थी), डॉ० आशुतोष दुबे (राज्य शिक्षा संस्थान, शिक्षा-निदेशक, प्रयागराज), प्रो० पी० झा (निदेशक, राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन), अमित मालवीय-वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी, उ०म०रेलवे, हरीशचन्द्र पाण्डेय वरिष्ठ साहित्यकार व कवि, जस्टिना कुरोस्का (जर्मनी), फ्रांसेस्का लूनारी (जर्मनी), निकलैस फोयडल (जर्मनी) प्रभृति विद्वज्जन एवं राजनेता हिन्दी-संग्रहालय में आये।
१ अक्टूबर, २०२२ से ३० सितम्बर, २०२३ की अवधि में ९१२ अध्येताओं ने २१२४ ग्रन्थों का अध्ययन किया।
सम्मेलन का हस्तलिखित ग्रन्थ-कक्ष
सम्मेलन-संग्रहालय के इस ज्ञान केन्द्र में लगभग १२००० हस्तलिखित ग्रन्थ संगृहीत हैं। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत हस्तलिखित ग्रन्थों की विवरणात्मक सूची दो भागों में मुद्रित हो चुकी है।
भारत सरकार द्वारा स्वीकृत योजनाओं के अन्तर्गत वर्ष १९८४-८५ के अन्तर्गत संग्रहालय में संगृहीत पाण्डुलिपियों की संस्कृत एवं हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों की विवरणात्मक सूची दो भागों में मुद्रित की गयी है।
सम्मेलन के इस हस्तलिखित ग्रन्थ कक्ष का अपना विशिष्ट महत्त्व है। इसमें अनेक ग्रन्थ सर्वथा दुर्लभ एवं अप्राप्य हैं और उनका ऐतिहासिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से विशिष्ट महत्त्व है। इन महत्त्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रन्थों को लाल कपड़ों में लपेटकर काष्ठ के वेष्ठनों में सुरक्षित कर गोदरेज को अलमारियों में व्यवस्थित रूप से रखा गया है। सुरक्षा की दृष्टि से समय- समय पर नेप्थीन की कीटनाशक गोलियाँ रखी जाती हैं तथा विशेष कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव भी किया जाता है।
सम्मेलन-संग्रहालय के इस विशेष कक्ष में १७ वीं शती का हस्तलिखित कुण्डलीनुमा सचित्र भागवत, जिसमें अत्यन्त कलात्मक ३८ चित्र हैं, जिसकी लम्बाई ६९ फीट है, काष्ठमंजूषा में सुरक्षित है। इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता का अत्यन्त कलापूर्ण एवं मूल्यवान् गोलाकृत हस्तलेख शीशे में मढ़ा हुआ, इस कक्ष में प्रदर्शित है।
सम्मेलन के इस संग्रहालय में ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तुओं के अतिरिक्त साहित्यकारों के ४९९७ महत्त्वपूर्ण पत्र भी संगृहीत हैं।
प्राचीन समय के १८ सिक्के, जिनमें अधिकांश का विवरण लिखा हुआ है, संग्रह में सुरक्षित हैं। इसके अतिरिक्त अनेक ताम्रलेखों-अभिलेखों की प्रतिलिपियाँ भी संग्रह में सुरक्षित हैं।
संग्रह में विशिष्ट साहित्यकारों तथा साहित्यिक गतिविधियों के अवसरों के अनेक महत्त्वपूर्ण एवं दुर्लभ चित्र एलबम में सुरक्षित हैं और इसी प्रकार विशिष्ट साहित्यकारों के परिचय-पत्र गार्ड-फाइलों में सुरक्षित किये गये हैं।
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हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने तथा हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि का व्यापक प्रचार करने के उद्देश्य से नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने वैशाख कृष्ण ७, संवत् १९६७, तदनुसार १ मई, १९१० ई० को एक बैठक में अखिल भारतीय स्तर पर एक साहित्य-सम्मेलन बुलाने का निश्चय किया था।