प्रचार विभाग
यह विभाग सम्मेलन की हिन्दी-प्रचार-योजनाओं को संचालित करता है।अपने पाक्षिक प्रकाशन ‘राष्ट्रभाषा सन्देश’ के द्वारा यह सारे देश तथा विदेशों में होनेवाले हिन्दी-प्रचार के समाचारों को उपयुक्त स्थानों तक निरन्तर पहुँचाया करता है। यही नहीं, हिन्दी-सम्बन्धी समस्याओं तथा भ्रान्तियों आदि के समाधान तथा निराकरण का माध्यम भी ‘राष्ट्रभाषा सन्देश’ बना हुआ है। अहिन्दीभाषी क्षेत्रों में यह पत्र अपनी प्रचार-सामग्री के प्रस्तुतीकरण तथा समाचारों की विविधता और महत्त्वपूर्ण जानकारी देने के कारण बहुत ही लोकप्रिय है। इस क्षेत्र में ‘राष्ट्रभाषा सन्देश’ सर्वमान्य एकमात्र महत्त्वपूर्ण पाक्षिक पत्र है। इसके अतिरिक्त यह विभाग देश में बिखरी हुई सैकड़ों हिन्दी-प्रचारिणी संस्थाओं के माध्यम से देश में निरन्तर राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति लोगों की आस्था बढ़ाने का कार्य करता रहा है। हिन्दी-दिवस, महाकवियों तथा हिन्दी के महापुरुषों की जयन्तियाँ आदि समारोहों का आयोजन सम्मेलन में तो किया ही जाता है, देश की जनता को भी संस्थाओं-विद्यालयों के माध्यम से इस ओर प्रेरित किया जाता है।
इधर प्रचार-विभाग ने प्रचार की अधुनातन प्रवृत्तियों को अपनाया है और सम्मेलन- दैनन्दिनी तथा हिन्दी के प्रेरक पोस्टरों का भी प्रकाशन इस विभाग ने किया है।
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हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने तथा हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि का व्यापक प्रचार करने के उद्देश्य से नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने वैशाख कृष्ण ७, संवत् १९६७, तदनुसार १ मई, १९१० ई० को एक बैठक में अखिल भारतीय स्तर पर एक साहित्य-सम्मेलन बुलाने का निश्चय किया था।